प्राण का अर्थ एवं महत्व : पंचतत्व में से एक प्रमुख तत्व वायु हमारे शरीर को जीवित रखती है और वात के रूप में शरीर के तीनो दोषो में से एक दोष है जो श्वाश के रूप में हमारा प्राण है.
पित्त पंगु कफ पंगु पंगवो मलधावत।
वायुना यत्र नियन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत।।
पवनस्टेषु बलवान विभागकारनानमत।
रजोगुणमय सूक्ष्म शीतो रक्ष लघुश्वाल।।
पित्त कफ देह की अन्य धातु तथा मल यह सब पंगु हैं अर्थात यह सभी शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते इन्हें वायु की जहां तहां ले जाता है जैसे आकाश में वायु बादलों को इधर-उधर ले जाता है अतः इन तीनों दोषों वात पित्त एवं कफ हमें बात ही बलवान है क्योंकि वह सब धातु मल आदि का बिभाग करने वाला और रजोगुण से युक्त सुक्ष अर्थात समस्त शरीर के सुख क्षेत्रों में प्रवेश करने वाला सीट वीर्य रुखा हल्का और चंचल है.
उपनिषदों मैं प्राण को ब्रह्मा कहां है प्राण शरीर के कण-कण में व्याप्त है शरीर के कर्म इंद्रियां आदि तो सो भी जाते हैं विश्राम कर लेते हैं किंतु यह प्राणशक्ति कभी भी ना सोती है ना विश्राम करती है रात दिन अनवरत रूप में कार्य करती ही रहती है चलती ही रहती है चरेवती -चरेवती यही इसका मूल मंत्र है जब तक प्राणशक्ति चलती रहती है तभी तक प्राणियों को आयु रहती है जब यह शरीर में काम करना बंद कर देती है तब आयु समाप्त हो जाती है प्राण जब तक कार्य करते रहते हैं तभी तक जीवन है प्राणी तभी तक जीवित कहलाता है प्राण शक्ति की कार्य बंद करने पर वह मृतक कहानी लगता है शरीर में प्राण ही तो सब कुछ है अखिल ब्रह्मांड में प्राण सर्व शक्तिशाली एवं उपयोगी जीवनी तत्व है प्राण के आश्रय से ही जीवन है.
प्राण के कारण ही पिंड तथा ब्रम्हांड की सत्ता है प्राण की अदृश्य शक्ति से ही संपूर्ण विश्व का संचालन हो रहा है हमारा देह भी प्राण की ऊर्जा शक्ति से क्रियाशील होता है हमारे अन्नमय कोष (Physical Body) तथा दृश्य शरीर भी प्राणमय कोष(Ethical Body) की अदृश्य शक्ति से संचालित होता है आहार के बिना व्यक्ति वर्ष जीवित रह सकता है परंतु प्राण तत्व के बिना एक भी पल जीवित नहीं रह सकता पानी ऊर्जा ही हमारा जीवन शक्ति तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति का आधार है सभी महत्वपूर्ण ग्रंथी हृदय फेफड़े मस्तिष्क एवं मेरुदंड सहित संपूर्ण शरीर को प्राण ही स्वास्थ्य एवम ऊर्जावान बनाता है प्राण की उर्जा से ही आंखों में दर्शन सकती कानों में श्रवण शक्ति यशिका में ग्रंण शक्ति वाणी में सरसता मुख पर आवाज तेज मस्तिष्क एवं अन्य ज्ञान शक्ति एवं उधर में पाचन शक्ति कार्यरत रहती है इसलिए उपनिषदों में ऋषि कहते हैं
प्राणसेदम वशे सर्व यत त्रिदिवे यत्प्रीतिष्टितम।
मातेव पुत्राण रक्षस्व श्रीचस्व प्रज्ञा च विदेही न इति।
पृथ्वी घु अथवा अंतरिक्ष हिंदी ब्लॉकों में जो कुछ भी है वह सब प्राण के वश में है हे प्राण जैसी माता स्नेह भाव से पुत्रों की रक्षा करती है ऐसी ही तू हमारी रक्षा कर हमें श्री तथा प्रज्ञा प्रदान कर.
प्राण के प्रकार
प्राण साक्षात ब्रह्मा से अथवा प्रकृति रूपी माया से उत्पन्न है प्राण गत्यात्मक है इस प्राण की गत्यात्मक ता सदा गतिक वायु में पाई जाती है अतः गौणी वृति से वायु को प्राण कह सकते हैं शरीर गत स्थान भीड़ से एक ही वायु प्राण अपान आदि नामों से जाना जाता है प्राणशक्ति एक ऐसी है इसी प्राण को स्थान एवं कार्यों की भीड़ से विभिन्न नामों से जाना जाता है देह में मुख्य रूप से पांच प्राण तथा पांच उप प्राण हैं.
पंचप्राण की स्थिति तथा कार्य
1.प्राण : शरीर में करंट से हृदय पर्यंत जो वायु कार्य करता है उसे प्राण कहा जाता है .
कार्य प्राण नासिका मार्ग कंठ स्वतंत्र व इंद्रियां वनलिका स्वसन तंत्र फेफड़ों एवं हृदय की क्रियाशीलता तथा शक्ति प्रदान करता है .
2.अपान : नाभि के नीचे से पैर के अंगूठे पर यंत्र जो प्राण कार्यशील रहता है उसे अपान कहते हैं .
3. उडान : कंठ के ऊपर से सिर पर्यंत देश में अवस्थित प्राण को उडान कहते हैं .
कार्य कंठ से ऊपर शरीर के समस्त अंगों नेत्र नासिका एवं संपूर्ण मुख्य मंडल को उर्जा और आभा प्रदान करता है पीनियल ग्रंथि सहित पूरे मस्तिष्क को यह वरदान प्राण क्रियाशीलता प्रदान करता है .
4.समान : हृदय की नीचे से नाभि पर यंत्र शरीर में क्रियाशील प्राणवायु को समान कहते है।
कार्य : यकृत और प्लीहा एवं अग्नाशय सहित संपूर्ण पाचन तंत्र की आंतरिक कार्यप्रणाली को नियंत्रित करता है
5. ब्यान : यह जीवन प्राण शक्ति पूरे शरीर में व्याप्त है शरीर की समस्त गतिविधियों को नियमित तथा नियंत्रित करती है सभी अंगों मांसपेशियों तंतुओं संधियों एवं नालियों को क्रियाशीलता ऊर्जा एवं शक्ति यही ब्यान प्राण प्रदान करता है
इन पांच प्राणों के अतिरिक्त शरीर में देवदत्त नाग क्रिंकल कूर्म एवं धनंजय नामक 5 उपकरण है जो क्रमशः चिकना पलक झपकना जम्हाई लेना खुजलाना हिचकी लेना आदि क्रियाओं को संचालित करते हैं प्राणों का कार्य प्राणमय को से संबंधित है और प्राण प्राणायाम इन्हीं प्राणों एवं प्रणाम मैं कोर्स को शुद्ध स्वस्थ और निरोग रखने का प्रमुख कार्य करता है इसलिए प्राणायाम का सर्वाधिक महत्व और उपयोग भी है प्राणायाम का अभ्यास शुरू करने से पहले इसकी पृष्ठभूमि का परिज्ञान बहुत आवश्यक है अतः परी प्रणाम रूपी प्राण साधना के प्रकरण के आरंभ में प्राणों में संबंधित विवरण किया गया है .