कुण्डलिनी-जागरण के आत्मिक लाभ की अभिव्यक्ति शब्दों में तो नहीं की जा सकती। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है, कि यह एक पूर्ण आनन्द की स्थित होती है। इस स्थिति को प्राप्त करने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रह जाता। मन में पूर्ण संतोष, पूर्णशांति एवं परमसुख होता है। ऐसे साधक के पास बैठन से दूसरे व्यक्ति को भी शांति की अनुभूति होती है। ऐसे योगी पुरूष के पास बैठन से दूसरे विकारी पुरूष के भी विकार शांत होने लगते हैं तथा योग एवं भगवान् के प्रति श्रद्धाभाव बढ़ते हैं। इसके अतिरिक्त, जिसकी कुण्डलिनी जाग्रत् हो जाती है, उसके मुख पर एक दिव्य आभा, ओज, तेज तथा कांति बढ़ने लगती है।
शरीर पर भी लावण्य आने लगता है। मुख पर प्रसन्नता और समता का भाव होता है। दृष्टि में समता, करूणा तथा दिव्य प्रेम होता है। हृदय में विशालता, उदारता और परोपकार आदि के दिव्य भाव होते हैं। विचारों में महानता तथा पूर्ण सात्त्विकता होती है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उसके जीवन का प्रत्येक पहलू पूर्ण पवित्र, उदात्त और महानता को छूता हुआ होता है।
इस पूरी प्रक्रिया के जहाँ आध्यात्मिक लाभ हैं, वहीं एक लाभ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण यह भी है, कि ऐसी यौगिक प्रक्रिया करनेवाले व्यक्ति को जीवन में कोई रोग नहीं हो सकता है तथा कैंसर, हृदयरोग, मधुमेह, मोटापा, पेट के समस्त रोग, वात, पित्त एवं कफ की सभी विषमताएँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं। व्यक्ति पूर्ण नीरोग हो जाता है। आज के स्वार्थी व्यक्ति के लिए क्या यह कम उपलब्धि है कि बिना किसी दवा के सभी रोग मिटाये जा सकते हैं और जिन्दगी भर नीरोग, स्वस्थ, ओजस्वी, मनस्वी और तपस्वी बना जा सकता है।
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