Hello Friends!!!! You Are Highly Welcomed On Our Website To Read About Rahim Ke Dohe / संत रहीम दास के अनमोल दोहे हिंदी में On Our Informational Website Famous Hindi Poems.
Famous Hindi Poems सूचना वेबसाइट पर हिंदी में Rahim Ke Dohe के बारे में पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर आपका बहुत स्वागत है। नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम Altaf Hassan और आज की पोस्ट में, आप Rahim Ke Dohe Hindi में पढ़ेंगे ।
रहीम के दोहे अनंत काल तक सभी के जीवन को रोशन करते रहेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। यह हमेशा उतना ही महत्वपूर्ण होगा जितना अकबर के समय में था। रहीम दास जी का हिंदी साहित्य में योगदान अभूतपूर्व है और Rahim Ke Dohe कभी नहीं भुलाए जा सकते।
Rahim Das Ji के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
Rahim Das Ji (17 December 1556 – 1 October 1627) उनका पूरा नाम Abdul Rahim Khan-I-Khanan है। उन्हें लोकप्रिय रूप से बस रहीम / Rahim के रूप में जाना जाता है । वह मुगल सम्राट अकबर के शासन के दौरान भारत में रहने वाले कवि थे, और अकबर उनके गुरु भी थे। वह अपने दरबार के नौ महत्वपूर्ण मंत्रियों (Dewan) में से एक थे, जिन्हें नवरत्नों के नाम से भी जाना जाता है।
Rahim Ke Dohe / रहीम के दोहे के माध्यम से न केवल लोगों को सही तरीके से जीने की कला सिखाई गई बल्कि लोगों को नीति के बारे में भी बताया, उन्होंने लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी किया और उन्हें सही मार्गदर्शन देने की कोशिश की।
रहीम दास का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था और सभी को अपनी ओर आकर्षित करता था। भले ही वह मुसलमान थे, लेकिन वह कृष्ण के भी भक्त थे। रहीम ने अपनी कविता में रामायण, महाभारत, पुराण और गीता जैसे धर्मग्रंथों के कथानकों कों लिए हैं।
Rahim Ke Dohe | संत रहीम दास के दोहे
रहीम ने अपने जीवन के अनुभवों से कई दोहों को बहुत ही सरल और आसान भाषा शैली में व्यक्त किया है। जो वाकई अद्भुत है। तो चलिए शुरू करते हैं, और देखते हैं Rahim Ke Dohe अर्थ के साथ ।
1. ” रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥ “
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि प्यार का बंधन एक धागे की तरह होता है, जिसे कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए, बल्कि इसकी रक्षा करनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि प्यार का बंधन बहुत नाजुक है, इसे कभी भी बिना किसी मजबूत कारण के नहीं तोड़ा जाना चाहिए। क्योंकि एक बार एक धागा टूट जाता है, तो इसे फिर से जोड़ा नहीं जा सकता है। टूटे हुए धागे को जोड़ने की कोशिश में, धागे में गाँठ पड़ जाती है। इसी तरह, एक बार किसी के साथ रिश्ता टूट गया, तो उस रिश्ते को फिर से जोड़ा नहीं जा सकता।
2. ” जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।। ”
व्याख्या – रहीम अपने दोहे में कहता है कि किसी भी बड़े को छोटा कहना बड़े के बड़प्पन को कम नहीं करता, क्योंकि गिरधर को कान्हा कहने से उसकी महिमा कम नहीं होती। रहीम दास जी के इस दोहे के माध्यम से, हमें यह पता चलता है कि बारप्पन नाम से नहीं, बल्कि कामों के द्वारा दिखता है। इसलिए, किसी भी बड़े को छोटा कहने से उसका बड़प्पन कम नहीं होता है।
3. ” रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥ “
व्याख्या – कम दिमाग के व्यक्तियों के साथ न तो प्रीति और न ही शत्रुता अच्छी है। कहने का तात्पर्य यह है कि, एक कुत्ते का काटता या चाटना दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है।
4. ” छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात ।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात ॥ “
व्याख्या – रहीम दास जी कहते हैं कि क्षमा करना बड़ों को शोभा देता है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। यानी अगर छोटे सैतानी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर माफ़ कर देना चाहिए। यदि छोटे उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा अगर लात मारे भी तो उससे कोई नुकसान नहीं होती।
4. ” रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥ “
व्याख्या – अपने मन की दर्द या पीड़ा को दूसरों से छिपाकर रखना चाहिए। क्योंकि जब किसी और को आपके दर्द का एहसास होता है, तो वे केवल इसका मजाक बनाते हैं। कोई भी आपके दर्द को साझा नहीं कर सकता है। यानी कोई भी व्यक्ति आपके दर्द को कम नहीं कर सकता।
5. ” जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। “
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के इन्सान होते हैं, उन लोगों बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे जहरीले सांप चंदन के पेड़ से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डालता।
6. ” माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।। “
व्याख्या – माघ मास आने पर टेसू का पेड़ और पानी से बाहर ज़मीन पर आ पड़ी मछली की स्थिति बदल जाती है। इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर दुनिया की अन्य वस्तुओं की भी दशा बदल जाती है। मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही दुनिया की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है।
7. ” एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥ “
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि एक समय में एक ही काम करना चाहिए। क्योंकि एक काम के पूरा होने से कई और काम अपने आप पूरे हो जाते हैं। यदि आप एक ही समय में कई लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, तो कुछ भी नहीं आता है। क्योंकि आप एक साथ कई कार्यों में अपना 100% नहीं दे सकते। रहीम कहते हैं कि यह वैसे ही है जैसे पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब इसे तृप्त करने के लिए पौधे की जड़ में पानी डाला जाता है। अर्थात, जब पौधे में पर्याप्त पानी डाला जाता है, तो पौधे में केवल फल और फूल आएंगे।
8. ” तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ “
व्याख्या – रहीम दास बोलते हैं कि पेड़ अपने फल नहीं खाते हैं और झील भी अपना पानी नहीं पीती है। इसी तरह, अच्छे और सज्जन पुरुष वे हैं जो दूसरों के काम के लिए संपत्ति इकट्ठा करते हैं।
9. “ दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं।। ”
व्याख्या – रहीम दास जी के इस दोहे से हम सीखते हैं कि हम किसी भी व्यक्ति के गुणों और स्वभाव को उसके भाषण से समझ सकते हैं, अर्थात हमें मीठी भाषा का भी उपयोग करना चाहिए क्योंकि मीठी आवाज सभी को आकर्षित करती है और हम अपनी कई बिगड़े कामों भी कर सकते हैं ।
10. ” समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।। “
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जब उपयुक्त समय आता है, तो पेड़ फल पैदा करता है। झड़ने का समय आने पर वह गिर जाता है। किसी की भी स्थिति हमेशा एक जैसी नहीं होती है, इसलिए दुःख के समय में पश्चाताप करना व्यर्थ है।
Precious Rahim Ke Dohe
11. ” चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥ “
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला तो वे चित्रकूट में रहने चले गए। रहीम यह भी कहते हैं कि चित्रकूट रहने का स्थान नहीं था क्योंकि यह बहुत अँधेरा व् घना जगह था। लेकिन रहीम का कहना है कि, ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी आपदा आती है। कहने का अभिप्राय यह है कि आपदा में व्यक्ति सबसे कठिन कार्य करता है।
12. ” रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारी।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी।। ”
व्याख्या – बड़ी वस्तुओं को देखकर छोटे वास्तु को नहीं फेंकना चाहिए, क्युकी जहां छोटी सी सुई कम आती हैं, वहां बड़ी तलवार क्या कर सकती हैं। अथार्त हमें हर चीज के महत्व को समझना चाहिए क्योंकि विभिन्न चीजों का अपना अलग महत्व है। जैसे, जहां सुई का इस्तेमाल किया जाना है, वहां तलवार काम करेगी।
13. ” थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात॥ “
व्याख्या – जैसे क्वार / आश्विन के महीने में, आकाश में घने बादल दिखाई देते हैं, लेकिन बारिश के बिना, वे केवल गडगडाहट शोर करते हैं। इस तरह जब एक अमीर व्यक्ति गरीब हो जाता है, तो उसके मुंह से केवल बड़ी बातें सुनने को मिलती हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं है।
14. ” जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥ “
व्याख्या – रहीम दास जी बोलते जब लोग प्रगति करते हैं, तो वे बहुत इतराते हैं। जैसे शतरंज के खेल में, जब मोहरा फरजी हो जाता है, तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।
15. ” धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥ “
व्याख्या – रहीम जी का कहना है कि कीचड़ में मिलने वाला थोड़ा पानी धन्य है क्योंकि कोई भी छोटा जीव की प्यास उस पानी से बुझती है। लेकिन उस महासागर का पानी बहुत अधिक होने के बावजूद बर्बाद हो जाता है क्योंकि कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पता। इसका अर्थ है, अगर आप किसी की मदद नहीं कर सकते हैं तो बड़ा होने का कोई मतलब नहीं है।
16. “ वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग।। ”
व्याख्या – रहीम दास के इस दोहे का अर्थ है की वे लोग सौभाग्यशाली हैं, जिनका शरीर हमेशा सभी का उपकार करता है। जिस तरह मेंहदी बाटने वाले के शरीर पर भी रंग लग जाता हैं। उसी तरह परोपकारी व्यक्ति का शरीर शोभायमान रहता है। यानी , दूसरों की मदद करना न केवल अच्छा है, बल्कि परोपकारी और सज्जन व्यक्ति का शरीर अधिक सुंदर रहता है क्योंकि दूसरों की भलाई में ही अच्छाई छिपी रहती है।
17. “ जैसी परे सो सही रहे, कही रहीम यह देह।
धरती ही पर परत हैं, सित घाम औ मेह।। ”
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि यदि पृथ्वी पर सर्दी, गर्मी और बारिश पड़ती है, तो वह इसे सहन करता है, उसी प्रकार मानव शरीर को सुख और दुःख सहना चाहिए। रहीम का यह पाठ हमें सिखाता है कि मनुष्य में सहनशीलता की प्रवृत्ति होनी चाहिए, क्योंकि जिन लोगों में सहनशक्ति नहीं होती है, उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसलिए मानव शरीर को सुख-दुख दोनो सहना चाहिए।
18. ” बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥ “
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जब लोग छोटे लक्ष्य के लिए बड़े काम करते हैं, तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने पर्वत को उठाया, तो उन्हें ‘गिरिधर’ नाम नहीं मिला क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, लेकिन जब श्री कृष्ण ने पर्वत को उठाया, तो उन्हें ‘गिरिधर’ नाम दिया गया क्योंकि उन्होंने सभी लोगों की रक्षा के लिए पर्वत उठाया था।
19. ” रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥ “
व्याख्या – रहीम जी बोलते हैं कि जब आपके पास पैसा नहीं होता है, तो कोई भी आपको आपदा में मदद नहीं करता है। यह वैसा ही है जैसे अगर तालाब सूख जाए, तो कमल को सूर्य जैसा प्रतापी भी नहीं बचा पाता है। कहने का मतलब यह है कि केवल आपका पैसा ही आपको आपकी परेशानियों से बाहर निकाल सकता है क्योंकि कोई भी मुसीबत में किसी का साथ नहीं देता है।
20. ” बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय ।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।“
व्याख्या – रहीम दास जी कहते हैं कि मनुष्य को विचार के साथ व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि यदि किसी कारण से कुछ गलत हो जाता है, तो उसे ठीक करना मुश्किल होता है, जैसे अगर एक बार दूध फट जाए, तो लाख कोशिश करने के बाद भी, उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा ।
Rahim Ke Dohe
21. ” खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय ।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।। “
व्याख्या – खीरे की कड़वाहट / तीखेपन को दूर करने के लिए, इसके सिर को काटकर रगड़ दिया जाता है, जिसके कारण इसका तीखापन दूर हो जाता है, इसके विकार गायब हो जाते हैं। उसी तरह, उसी तरह का व्यवहार उन लोगों के साथ किया जाना चाहिए जो गलत आचरण या कड़वे स्वभाव या प्रवृत्ति के हैं। केवल इस प्रकार की सजा उसके गलत आचरण को दूर कर सकती है।
22. ” दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं ।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं ।। “
व्याख्या – कौआ और कोयल एक ही प्रतीत होते हैं, कोयल अपना बच्चा जान कौवे को पालती है लेकिन उसके बोलने से ही आभास होता है कि वह भ्रम वश कौआ पाल रही है, जैसे एक सज्जन और बुरे आदमी के बीच का अंतर उसके साथ दिखाई देता है बोलने वाला सज्जन। लोग हमेशा नरम भाषण बोलते हैं, वही दुष्ट लोग कठोर शब्दों का उपयोग करते हैं और लोगों को पीड़ा पहुंचाते हैं।
23. ” पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।। “
व्याख्या – बारिश के मौसम को देखकर कोयल और रहीम के मन ने चुप्पी साध ली है। अब केवल मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारे बारे में कोई नहीं पूछता। विचार यह है कि कुछ मौके आते हैं जब गुनवाना को चुप रहना पड़ता है। कोई भी उनका सम्मान नहीं करता है और केवल बोलबाला लोगों का प्रभुत्व हो जाता है।
24. ” रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी लैहैं कोय।। ”
व्याख्या – आपके मन का दुःख मन के अंदर छिपा कर रखना चाहिये, क्योंकि लोग दूसरों का दुःख सुनने के बाद इइठला भले ही लेते हैं लेकिन , लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इसे वितरित करते हैं। रहीम जी का यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें अपनी समस्याओं का हल स्वयं खोजने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि आज की दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जो किसी और की समस्याओं को समझें।
25. ” अब रहीम मुसकिल परी गाढे दोउ काम।
सांचे से तो जग नहीं झूठे मिलै न राम।। “
व्याख्या – इस दोहे में, रहीम दास वर्तमान समय की प्रणाली की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। रहीम मुश्किल में है। सत्य पर दुनिया में काम करना बहुत मुश्किल है और झूठ बोलकर भगवान को प्राप्त करना असंभव है। निष्ठा और आध्यात्मिकता को एक साथ नहीं रखा जा सकता है।
26. ” धन दारा अरू सुतन सों लग्यों है नित चित्त।
नहि रहीम कोउ लरवयो गाढे दिन को मित्त।। “
व्याख्या – आपको हमेशा अपने चित को पैसे, बच्चों और मर्दानगी पर नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह सब आपदा के समय या जरूरत के समय काम नहीं करता है। इसलिए, आपको हमेशा अपना दिमाग भगवान में लगाना चाहिए, जो कि विपत्ति के समय भी उपयोगी है।
27. ” नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥ “
व्याख्या – हिरण किसी के संगीत से खुश होता है और अपना शरीर त्याग देता है। उसी तरह, कुछ लोग दूसरों के प्यार से खुश होते हैं और अपना सबकुछ दे देते हैं। लेकिन कुछ लोग जानवरों से भी बदतर होते हैं जो दूसरों से बहुत कुछ लेते हैं लेकिन बदले में कुछ नहीं देते हैं।
28. ” रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ “
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि पानी बहुत महत्वपूर्ण है। इसे बनाए रखें यदि पानी समाप्त हो जाता है तो न तो मोती और न ही मनुष्य का कोई महत्व है। पानी (यानी चमक या आभा) के बिना मोती बेकार है। पानी के बिना (यानी सम्मान), मनुष्य का जीवन निरर्थक है और रोटी पानी के बिना नहीं बन सकती, इसलिए आटा भी बेकार है। इसलिए इंसान को अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए।
Rahim Ke Dohe अंतिम शब्द।
तो, आज के लिए बस इतना ही। उपरोक्त सभी (Rahim Ke Dohe) / रहीम के दोहे पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हमें खेद है कि इस पोस्ट में हमने सभी रहीम के दोहे नहीं लिखी।
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