Dil ki Rani– Munsi Premchand ki Kahani (दिल की रानी – मुंशी प्रेमचंद की कहानी)

कई महीने गुजर गए। युवक हबीब तैमूर का वजीर है, लेकिन वास्‍तव में वही बादशाह है। तैमूर उसी की आखों से देखता है, उसी के कानों से सुनता है और उसी की अक्‍ल से सोचता है। वह चाहता है, हबीब आठों पहर उसके पास रहे।उसके सामीप्‍य में उसे स्‍वर्ग का-सा सुख मिलता है। समरकंद में एक प्राणी भी ऐसा नहीं, जो उससे जलता हो। उसके बर्ताव ने सभी को मुग्‍ध कर लिया है, क्‍योंकि वह इन्‍साफ से जै-भर भी कदम नहीं हटाता। जो लोग उसके हाथों चलती हुई न्‍याय की चक्‍की में पिस जातें है, वे भी उससे सदभाव ही रखते है, क्‍योकि वह न्‍याय को जरूरत से ज्‍यादा कटु नहीं होने देता।

संध्‍या हो गई थी। राज्‍य कर्मचारी जा चुके थे । शमादान में मोम की बतियों जल रही थी। अगर की सुगधं से सारा दीवानखाना महक रहा था। हबीब उठने ही को था कि चोबदार ने खबर दी-हुजूर जहापनाह तशरीफ ला रहे है। हबीब इस खबर से कुछ प्रसन्‍न नहीं हुआ। अन्‍य मंत्रियों की भातिं वह तैमूर की सोहबत का भूखा नहीं है। वह हमेशा तैमूर से दूर रहने की चेष्‍टा करता है। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि उसने शाही दस्‍तरखान पर भोजन किया हो। तैमूर की मजलिसों में भी वह कभी शरीक नहीं होता। उसे जब शांति मिलति है, तब एंकात में अपनी माता के पास बैठकर दिन-भर का माजरा उससे कहता है और वह उस पर अपनी पंसद की मुहर लगा देती है।

उसने द्वार पर जाकर तैमूर का स्‍वागत किया। तैमूर ने मसनद पर बैठते हुए कहा- मुझे ताज्‍जुब होता है कि तुम इस जवानी में जाहिदों की-सी जिंदगी कैसे बसर करते हो ‍हबीब । खुदा ने तुम्‍हें वह हुस्‍न दिया है कि हसीन-से-हसीन नाजनीन भी तुम्‍हारी माशूक बनकर अपने को खुश्‍नसीब समझेगी। मालूम नहीं तुम्‍हें खबर है या नही, जब तुम अपने मुश्‍की घोड़े पर सवार होकर निकलते हो तो समरकंद की खिड़कियों पर हजारों आखें तुम्‍हारी एक झलक देखने के लिए मुंतजिर बैठी रहती है, पर तुम्‍हें किसी तरफ आखें उठाते नहीं देखा । मेरा खुदा गवाह है, मै कितना चाहता हू कि तुम्‍हारें कदमों के नक्‍श पर चलू। मैं चाहता हू जैसे तुम दुनिया में रहकर भी दुनिया से अलग रहते हो , वैसे मैं भी रहूं लेकिन मेरे पास न वह दिल है न वह दिमाग । मैं हमेशा अपने-आप पर, सारी दुनिया पर दात पीसता रहता हू।

जैसे मुझे हरदम खून की प्‍यास लगी रहती है , तुम बुझने नहीं देतें , और यह जानते हुए भी कि तुम जो कुछ करते हो, उससे बेहतर कोई दूसरा नहीं कर सकता , मैं अपने गुस्‍से को काबू में नहीं कर सकता । तुम जिधर से निकलते हो, मुहब्‍बत और रोशनी फैला देते हो। जिसकों तुम्‍हारा दुश्‍मन होना चाहिए , वह तुम्‍हारा दोस्‍त है। मैं जिधर से निकलता नफरत और शुबहा फैलाता हुआ निकलता हू। जिसे मेरा दोस्‍त होना चाहिए वह भी मेरा दुश्‍मन है। दुनिया में बस एक ही जगह है, जहा मुझे आपियत मिलती है। अगर तुम मुझे समझते हो, यह ताज और तख्‍त मेरे रांस्‍ते के रोड़े है, तो खुदा की कसम , मैं आज इन पर लात मार दूं। मै आज तुम्‍हारे पास यही दरख्‍वास्‍त लेकर आया हू कि तुम मुझे वह रास्‍ता दिखाओ , जिससे मै सच्‍ची खुशी पा सकू । मै चाहता हूँ , तुम इसी महल में रहों ताकि मै तुमसे सच्‍ची जिंदगी का सबक सीखूं।

हबीब का हदय धक से हो उठा । कहीं अमीन पर नारीत्‍व का रहस्‍य खुल तों नहीं गया। उसकी समझ में न आया कि उसे क्‍या जवाब दे। उसका कोमल हदय तैमूर की इस करूण आत्‍मग्‍लानि पर द्रवित हो गया । जिसके नाम से दुनिया काप‍ती है, वह उसके सामने एक दयनीय प्राथी बना हुआ उसके प्रकाश की भिक्षा मांग रहा है। तैमूर की उस कठोर विकत शुष्‍क हिंसात्‍मक मुद्रा में उसे एक स्‍िनग्‍ध मधुर ज्‍योति दिखाई दी, मानो उसका जागत विवेक भीतर से झाकं रहा हो। उसे अपना ‍जीवन, जिसमें ऊपर की स्‍फूर्ति ही न रही थी, इस विफल उधोग के सामने तुच्‍छ जान पड़ा।
उसने मुग्‍ध कंठ से कहा- हजूर इस गुलाम की इतनी कद्र करते है, यह मेरी खुशनसीबी है, लेकिन मेरा शाही महल में रहना मुनासिब नहीं ।
तैमूर ने पूछा –क्‍यों
इसलिए कि जहा दौलत ज्‍यादा होती है, वहा डाके पड़ते हैं और जहा कद्र ज्‍यादा होती है , वहा दुश्‍मन भी ज्‍यादा होते है।
तुम्‍हारी भी कोई दुश्‍मन हो सकता है।
मै खुद अपना दुश्‍मन हो जाउ गा । आदमी का सबसे बड़ा दुश्‍मन गरूर है।
तैमूर को जैसे कोई रत्‍न मिल गया। उसे अपनी मनतुष्‍िट का आभास हुआ। आदमी का सबसे बड़ा दुश्‍मन गरूर है इस वाक्‍य को मन-ही-मन दोहरा कर उसने कहा-तुम मेरे काबू में कभी न आओगें हबीब। तुम वह परंद हो, जो आसमान में ही उड़ सकता है। उसे सोने के पिंजड़े में भी रखना चाहो तो फड़फड़ाता रहेगा। खैर खुदा हापिज।
यह तुरंत अपने महल की ओर चला, मानो उस रत्‍न को सुरक्षित स्‍थान में रख देना चाहता हो। यह वाक्‍य पहली बार उसने न सुना था पर आज इससे जो ज्ञान, जो आदेश जो सत्‍प्रेरणा उसे मिली, उसे मिली, वह कभी न मिली थी।