छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल अड़भार (Adbhar) अष्टभुजी एक अति प्रचीन धार्मिक स्थान (Ancient Tempal Vedh Shala) है। यह तीर्थस्थल आठ हाथों वाली एक देवी को समर्पित है। मंदिर का ज्योति कलश नवरात्रि के दौरान जला रहता है, जिससे इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। अड़भार मंदिर (Adbhar Temple) की वास्तुशिल्पीय डिजाइन भी बेहद उत्कृष्ट है। साथ ही यह धार्मिक कृत्य और परंपराओं का मजबूती के साथ निर्वाह कर रहा है। छत्तीसगढ़ के हर हिस्से से अड़भार अष्टभुजीय आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस कारण यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
तहसील: मालखरोदा
दूरी: सक्ती से 11 कि.मी.
अड़भार की मां अष्टभुजी आठ भुजाओं (eight arms) वाली है, ये बात तो अधिकांश लोग जानते हैं लेकिन देवी के दक्षिणमुखी (south face) होने की जानकारी कम लोगों को ही है। जांजगीर चांपा जिले में मुंबई हावड़ा रेल मार्ग (Mumbai Howrah rail route) पर शक्ति स्टेशन से दक्षिण पूर्व की ओर 11 किमी की दूरी पर स्थित अड़भार अष्टभुजी माता के मंदिर के नाम पर प्रसिद्ध है। लगभग 10 साल पहले यह गांव नगर पंचायत का दर्जा पाकर अब विकास की ओर अग्रसर है।
यहां नवरात्र पर मां अष्टभुजी (Ashtabhuji) के दर्शन के लिए भक्तों का भीड़ उमड़ जाती है। इस बार भी नवरात्रि में जिले के अलावा रायगढ़, बिलासपुर और कोरबा जिले के भक्त पहुंच रहे हैं। मंदिर में मां अष्टभुजी की ग्रेनाइट पत्थर की बहुत सूंदर और प्राचीन मूर्ति है। आठ भुजाओं वाली मां दक्षिणमुखी भी है। इस संबंध में नगर के प्रफुल्ल देशमुख ने बताया कि पूरे भारत में कलकत्ता की दक्षिणमुखी काली माता और अड़भार (Adbhar Temple) की दक्षिणमुखी अष्टभुजी देवी के अलावा और कहीं की भी देवी दक्षिणमुखी नहीं है।
जगत जननी माता अष्टभुजी का मंदिर दो विशाल इमली पेड़ के नीचे बना हुआ है।आदमकद वाले काले ग्रेनाइड की दक्षिणमुखी मूर्ति के ठीक दाहिनी ओर डेढ़ फीट की दूरी में देगुन गुरू की प्रतिमा योग मुद्रा में बैठी हुई प्रतीत होती है। मंदिर परिसर में पड़े बेतरतीब पत्थर की बारिक नक्काशी देखकर हर आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता है। प्राचीन इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्ट द्वार के नाम से मिलता है।
Anciant temple – Adbhar Astbhuji
Adbhar (ASHTADWAR) भारत के केंद्रीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक प्राचीन शहर है। छत्तीसगढ़ ज्यादातर अपने हिंदू देवी मंदिर के लिए जाना जाता है। प्राचीन वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साथ, यह पूरा शहर ऐतिहासिक मूल्य को प्रदर्शित करता है। यह 700AD (गुप्त वंश) के बाद से अस्तित्व में था, जिसमें एक समन्वित में लगभग 126 पाउंड थे यह स्थान भारत के केंद्रीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विभाग द्वारा ऐतिहासिक मूल्य के पैंतालीस स्थलों में से एक है।
गौरवशाली अष्टभुजी मंदिर जो 1300 वर्षों से भी अधिक पुराना है! चार बुनियादी भागों के साथ पुराने जैसे सैन्टुम, एनटाराला, मांडपा और मूकमाडपा। अद्वितीय विशेषताओं में शामिल हैं SOUTH-FACED (DAKSHIN-MUKHI) अष्टभुजी के जीवन के बड़े आकार, एक दुर्लभ ब्रम्हा की स्थिति (पुष्कर, राजस्थान के बाद अपनी तरह का दूसरा), और एक जैन प्रतिमा को देवगन गुरु के रूप में हिंदू माना जाता है।
अष्टभुजी (Ashtabhuji) माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने आठ विशाल दरवाजों की वजह से शायद इसका प्राचीन नाम अष्टद्वार रहा हो और धीरे धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अड़भार हो गया। लगभग 5 किमी. की परिधि में बसा यह नगर कुछ मायने में अपने आप में अजीब है। यहां हर 100 से 200 मीटर में किसी न किसी देवी देवता की मूर्तियां सही सलामत न सही लेकिन खंडित स्थिति में जरूर मिल जाएंगी।
How to arrive Adbhar Temple
आज भी यहां के लोगों को घरो की नींव खोदते समय प्राचीन टूटी फूटी मूर्तिया या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के प्राचीन धातु के कुछ न कुछ सामान अवश्य प्राप्त होते हैं।नगर पंचायत अद्भर में भगवान नटराज, शिव (स्थानीय स्तर पर “मानभंजन सोरा” कहा जाता है) और मां अष्टभुजी मंदिर है,खरसिया से दूरी 10km है और रायगढ़ (45 किमी पश्चिम), चंपा जांजगीर (45 किमी पूरब) और बिलासपुर से (100km पूर्व) दूरी पर स्थित है
मंदिर में आस्था के दीप
हर साल यहां चैत और चंर में नवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों से भी दर्शनार्थी यहां पहुंचते हैं। भक्त अनेक प्रकार की मन्नतें मांगते है । मन्नतें पूरी होने पर दीप जलवाते हैं।
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