देवी दुर्गा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक सबसे शक्तिशाली देवी है। हिंदू पौराणिक कथाओं में परोपकार और कृपाभाव को पूरा करने के लिए उन्हें विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। वह उमा है “चमक ” ,गौरी “सफेद या प्रतिभाशाली “; पार्वती, ” पर्वतारोही “; या जगतमाता , ” माँ -की दुनिया” उनका दानवो के लिए भयानक रूप है दुर्गा ” दुर्गम ” ; काली, “ब्लैक” ; चंडी , ” भयंकर “; और भैरवी ,”भयानक “।
कैसी दिखती है माँ दुर्गा ?
दुर्गा, एक बाघ या शेर पर सवार एक भव्य नारी योद्धा है। महिषासुर मर्दिनी बाघ पर सवार एक निडर रूप में जिसे अभय मुद्रा के नाम से जाना जाता है ,| भय से मुक्ति का आश्वासन देते हुए। जगतमाता अपने सभी भक्तो से कहती है ” मुझ पर सभी कार्यों को समर्प्रित कर दो मैं तुम्हे सभी मुसीबतों से बचा लुंगी। दुर्गा माँ आठ या दस हाथ होने के रूप में वर्णित की गयी है । यह 8 हाथ चतुर्भागों या हिंदू धर्म में दस दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं । वह सभी दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करती है।
माँ के हाथों में- हथियार और अन्य
- दुर्गा माँ के हाथ में शंख “प्रणवा ” या ” ॐ ” का प्रतिक है,जिसकी ध्वनि भगवान की उपस्थिति का प्रतिक है ।
- धनुष और तीर ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं । धनुष और तीर दोनों एक हाथ में पकड़ कर ” माँ दुर्गा ” यह दर्शा रही है ऊर्जा के दोनों रूपों पर नियंत्रण कैसे किया जाता है । -(क्षमता और गतिज)
- वज्र दृढ़ता का प्रतीक है। दुर्गा के भक्त वज्र की तरह शांत होने चाहिए किसी की प्रतिबद्धता में। व्रज की तरह वह सभी को तोड़ सकता है जिससे भी वह टकराता है।
- एक भक्त को अपने विश्वास को खोये बिना हर चुनौती का सामना करना चाहिए।
- दुर्गा माँ के हाथ में कमल पूरी तरह से खिला हुआ नहीं है ,यह सफलता नहीं बल्कि अन्तिम की निश्चितता का प्रतीक है। संस्कृत में कलम को “पंकजा” कहा `जाता है जिसका मतलब है कीचड़ में जन्मा हुआ। इस प्रकार, कमल वासना और लालच की सांसारिक कीचड़ के बीच श्रद्धालुओं का आध्यात्मिक गुणवत्ता के सतत विकास के लिए खड़ा है ।
- ” सुदर्शन -चक्र ” : एक सुंदर डिस्कस ,जो देवी की तर्जनी के चारों ओर घूमती है ,जब उसे नहीं छू ते है ,पूरी दुनिया दुर्गा की इच्छा के अधीन का प्रतीक है और उनके आदेश का भी। वह बुराई को नष्ट करने और धर्म के विकास के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करने के लिए इस अमोघ हथियार का उपयोग करती है।
- तलवार : तलवार जो माँ दुर्गा एक हाथ में पकड़ती है वह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है ,जो तेज़ होता है। सभी संदेहों से मुक्त है जो ज्ञान , तलवार की चमक का प्रतीक है।
- त्रिशूल : दुर्गा त्रिशूल या ” त्रिशूल ” तीन गुणों का प्रतीक है- सातवा ( निष्क्रियता ), राजस ( गतिविधि) और तामस (गैर गतिविधि)- और वह तीन प्रकार के दुःख मिटाती है शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक।
कैसे है शेरोवाली माँ दुर्गा इतनी शक्तिशाली ??
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा , परमेश्वर ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) के संयुक्त ऊर्जा से उभरी है, राक्षस महिषासुर से युद्ध करने के लिए , कथा के अनुसार राक्षस महिषासुर को वरदान दिया गया था की वह और इंसान और भगवान द्वारा नहीं मारा जा सकता। यहां तक कि ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) ने भी उसे रोकने में नाकाम रहे ,इसलिए एक स्त्री ऊर्जा की उपस्थिति नरसंहार करने के लिए की गयी ,जिसने तीनो लोको में तहलका मचा दिया था-अर्थ , स्वर्ग और नीचे की दुनिया । देवी दुर्गा को सभी देवताओं द्वारा विभिन्न हथियार उपहार में दिए गए थे। जिसमें से भाला और त्रिशूल सबसे आम तौर पर उसके चित्रों में दर्शाया गया है ।वह सुदर्शन चक्र, तलवार , धनुष और तीर और अन्य हथियार पकड़े देखी गयी है ।
नवरात्रि त्यौहार
माँ दुर्गा की विशेष पूजा के लिए नौ दिन के नवरात्रि का त्यौहार पुरे भारत में धूम धाम से मनाया जाता है | साल में नवरात्रि ४ बार आते है | जाने कब कब आते है दुर्गा के नवरात्रि | पहले दिन नवरात्रि घट स्थापना के साथ माँ अम्बिका को घर में बैठाया जाता है | रात्रि में माँ का जगराता या जागरण में भजन गाये जाते है |
माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी
माँ दुर्गा अपने 9 दिनों के नवरात्रि महोत्सव में अपने 9 रूपों के लिए जानी जाती है और दुनिया भर में अपने भक्तो द्वारा पूजी जाती है। नौ दिन की अविधि शुकल पक्ष के दिन से नौवे दिन अश्विना तक हिंदू कैलेंडर के सबसे शुभ समय माना जाता है,और इसलिए दुर्गा पूजा के रूप में वर्ष की सबसे मशहूर समय माना जाता है। नौ रूप नौ दिन तक लगातार अलग अलग पूजे जाते है। हालाकि साल में चार बार नवरात्रि आते है | जाने कब कब आते है दुर्गा के नवरात्रि
देवी दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से है ?
प्रथम् शैल-पुत्री च, द्वितियं ब्रह्मचारिणि
तृतियं चंद्रघंटेति च चतुर्थ कूषमाण्डा
पंचम् स्कन्दमातेती, षष्टं कात्यानी च
सप्तं कालरात्रेति, अष्टं महागौरी च
नवमं सिद्धिदात्री
शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी । एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी। उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती- हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है।
भ्रमाचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)
दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्माचारिणी की है। ” ब्रह्मा ” शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है । यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है “तप” । माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत ही सुन्दर है। उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन ( कमंडल ) है। वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है । उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है |
पार्वती हिमवान की बेटी थी। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल में व्यस्त थी नारद मुनि उनके पास आये और भविष्यवाणी की “तुम्हरी शादी एक नग्न भयानक भोलेनाथ से होगी और उन्होंने उसे सती की कहानी भी सुनाई। नारद मुनि ने उनसे यह भी कहा उन्हें भोलेनाथ के लिए कठोर तपस्या भी करनी पढ़ेगी। इसीलिए माँ पार्वती ने अपनी माँ मेनका से कहा की वह शम्भू (भोलेनाथ ) से ही शादी करेगी नहीं तोह वह अविवाहित रहेगी। यह बोलकर वह जंगल में तपस्या निरीक्षण करने के लिए चली गयी। इसीलिए उन्हें तपचारिणी ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।
चंद्रघंटा ( माँ का गुस्से का रूप )
तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद ) और बजती घंटी है। वह शेर पर बैठी संगर्ष के लिए तैयार रहती है। उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद ( चंद्र ) है। वह आकर्षक और चमकदार है । वह ३ आँखों और दस हाथों में दस हतियार पकडे रहती है और उनका रंग गोल्डन है। वह हिम्मत की अभूतपूर्व छवि है। उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है ।
कुष्मांडा ( माँ का ख़ुशी भरा रूप )
माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। ” कु” मतलब थोड़ा “शं ” मतलब गरम “अंडा ” मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा । वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है ,साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है।
स्कंदमाता ( माँ के आशीर्वाद का रूप )
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है ” स्कंद माता “, हिमालय की पुत्री , उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी । उनका एक बेटा था जिसका नाम “स्कन्दा ” था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था । स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है।
कात्यायनी ( माँ दुर्गा की बेटी जैसी )
माँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था , जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे ,उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या करनी पढ़ी ,उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्त की थी। उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में।
कालरात्रि ( माँ का भयंकर रूप )
माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि। वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है। उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है ,हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है। वह शावा (मृत शरीर ) पे सावरी करती है,उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है। उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है। । जलती हुई मशाल ( मशाल ) उसके बाएं हाथ में है और उनके निचले बाएं हाथ में वह उनके भक्तों को निडर बनाती है। उन्हें “शुभकुमारी” भी कहा जाता है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है।
महागौरी ( माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप )
आठवीं दुर्गा ” महा गौरी है।” वह एक शंख , चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है, वह आठ साल की है,उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है। उनकी तीन आँखें है ,उनकी सवारी बैल है ,उनके चार हाथ है। उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है ,ऊपर के बाएं हाथ में ” त्रिशूल ” है ,ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है।वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण शैली में मौजूद है. यह कहा जाता है जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धुल के वजह से और पृत्वी भी गन्दी हो गयी थी जब भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था। तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया.इसीलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है । यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान ,अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है।
सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप )
माँ का नौवा रूप है ” सिद्धिदात्री ” ,आठ सिद्धिः है ,जो है अनिमा ,महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,लिषित्वा और वशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है। उनके पास कई अदबुध शक्तिया है ,यह कहा जाता है “देवीपुराण” में भगवान शिव को यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह ” अर्धनारीश्वर ” के नाम से प्रसिद्ध हो गए। माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है ,उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा का यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं , ऋषियों मुनीस , सिद्ध , योगियों , संतों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा जाता है।
नवरात्रि क्या है
माँ दुर्गा की महिमा और नवरात्रि त्यौहार
इस जगत में माँ की महिमा अपरम्पार है , माँ के प्यार की ,त्याग की कोई तुलना नहीं की जा सकती और जब इस अनमोल रूप में दैविक शक्ति का वाश हो जाये ममता के साथ साथ आशीष स्नेह प्राप्त करके मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है | अत: हिन्दू धर्म में सभी देवी माँ अपने भक्तो के लिए करुणामई और सुखो का संचार करने वाली है |
माँ की महिमा का गुणगान करने का पर्व है नवरात्रे :
आदिशक्ति दुर्गा की पूजा, आराधना, साधना और उनमे समर्पण का पर्व नवरात्रे कहलाता है जिसमे माँ दुर्गा के 9 रूप का 9 दिन तक गुणगान और भक्ति की जाती है | पुराणों में मान्यता है की सबसे पहले भगवान श्री राम ने लंका विजय के ठीक १० दिन पूर्व इन शारदीय नवरात्रों में माँ भगवती की पूजा अर्चना की थी तभी से यह सनातन धर्म का मुख्य पर्व बन चूका है | इन नवरात्रों को आदि शक्ति को समर्पण करते हुए जो भी भक्त इनमे साधना करता है वह दसो महाविद्याओं की प्राप्ति कर सकता है | माँ उसका पग पग पर कल्याण करती है | भगवती के आशीष से कर्म , ज्ञान और भक्ति के पथ पर आनंद की प्राप्ति करता है | इनकी कृपा और आराधना से मनुष्यों को स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान होता है | रात्रि में माँ दुर्गा का जगराता या जागरण से अम्बिका को रिझाया जाता है |
नवरात्रि में कलश या घट स्थापना और पूजन
पावन पर्व नवरात्रो में दुर्गा माँ के नव रूपों की पूजा नौ दिनों तक चलती हैं| नवरात्र के आरंभ में प्रतिपदा तिथि को उत्तम मुहर्त में कलश या घट की स्थापना की जाती है। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है जो की किसी भी पूजा में सबसे पहले पूजनीय है इसलिए सर्वप्रथम घट रूप में गणेश जी को बैठाया जाता है |
कलश स्थापना और पूजन के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं
- मिट्टी का पात्र और जौ के ११ या २१ दाने
- शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे पत्थर नहीं हो
- शुद्ध जल से भरा हुआ मिट्टी , सोना, चांदी, तांबा या पीतल का कलश
- मोली (लाल सूत्र)
- अशोक या आम के 5 पत्ते
- कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
- साबुत चावल
- एक पानी वाला नारियल
- पूजा में काम आने वाली सुपारी
- कलश में रखने के लिए सिक्के
- लाल कपड़ा या चुनरी
- मिठाई
- लाल गुलाब के फूलो की माला
नवरात्र कलश स्थापना की विधि
महर्षि वेद व्यास से द्वारा भविष्य पुराण में बताया गया है की कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से शुद्ध किया जाना चाहिए। उसके उपरान्त एक लकड़ी का पाटे पर लाल कपडा बिछाकर उसपर थोड़े चावल गणेश भगवान को याद करते हुए रख देने चाहिए | फिर जिस कलश को स्थापित करना है उसमे मिट्टी भर के और पानी डाल कर उसमे जौ बो देना चाहिए | इसी कलश पर रोली से स्वास्तिक और ॐ बनाकर कलश के मुख पर मोली से रक्षा सूत्र बांध दे | कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रख दे और फिर कलश के मुख को ढक्कन से ढक दे। ढक्कन को चावल से भर दे। पास में ही एक नारियल जिसे लाल मैया की चुनरी से लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए। इस नारियल को कलश के ढक्कन रखे और सभी देवी देवताओं का आवाहन करे । अंत में दीपक जलाकर कलश की पूजा करे । अंत में कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ा दे | अब हर दिन नवरात्रों में इस कलश की पूजा करे |
विशेष ध्यान देने योग्य बात :
जो कलश आप स्थापित कर रहे है वह मिट्टी, तांबा, पीतल , सोना ,या चांदी का होना चाहिए। भूल से भी लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग नहीं करे ।
शेरोवाली माँ का जगराता
नवरात्रों में यदि माँ के जगराते की बात ना करे तो यह अधुरा सा ही लगता है | 9 दिनों तक चलने वाले देवी माँ दुर्गा के नवरात्रों में माँ के जगरात्रे की महिमा खूब है | माँ का दरबार सज्जा कर माँ के भजन से भरी यह रात जिसमे माँ के भक्त नाचते गाते पूरी रात माँ का गुणगान करते है | |
कैसे सजाया जाता है माँ का दरबार और होता है जागरण :
शेरोवाली माँ की मूरत या फोटो से माँ का दरबार सजाया जाता है | साथ में गजानंद और शिव जी की फोटो और मूरत लगाई जाती है | पुष्प मालाओ और इत्र से दरबार को महकाया जाता है | सामने एक अखंड ज्योत उस रात जलाई जाती है | माँ के दरबार में विभिन्न प्रकार की मिठाइयो का भोग लगाया जाता है | |
माँ के भजनों की प्रस्तुति :
अच्छे अच्छे और सुरीले भजनों से भजन गायक इस रात माँ की महिमा का गान करते है और श्रोतागण मन ही मन इन्हे गाते है | भजन संध्या का यह जागरण पूरी रात चलता है |
भक्त झूमते गाते नाचते और गूंजते जयकारे :
माँ के भजनों में आनंदविभोर होकर भक्त माँ को खुश करने के लिए नाचते गाते और मैय्या के नाम के जयकारे लगाते है | माँ के अखंड ज्योत भी साथ में नाचती हुई प्रतीत होती है | मरदंग की छाप पर जयकारे की गूंज से वातारवण पूरी तरह माँ ज्योतावाली के नाम हो जाता है | |
महा आरती :
माँ के जागरण का समापन माँ दुर्गा की आरती करके किया जाता है | जगराते में सम्मिलित सभी भक्तजन माँ के दरबार में हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते है और माँ दुर्गा की आरती का गायन करते है | इस आरती में जय अम्बे गौरी और जय दुर्गे खप्पर वाली जैसी मुख्य आरतीयाँ है | |
प्रसाद वितरण :
आरती के बाद सभी भक्तो को थाल में आरती दिखाई जाती है जिसपे भक्त दोनों हाथ वार कर अपने सर और आँखों पर लगाते है और प्रसाद प्राप्त करते है |
कब आते है नवरात्रे साल में
नवरात्रि मतलब 9 दिन और रात माँ दुर्गा की आराधना के लिए | इन 9 दिनों में माँ भगवती के 9 रूपों की पूजा की जाती है | ये वे दिन होते है जब माँ की कृपा अपरम्पार बरसती है अपने बच्चो पर | नवरात्रे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक की अवधि तक होते है | प्रतिपदा को ही माँ दुर्गा के घट या कलश की स्थापना कर दी जाती है |
अब हम आपको बताते है की मुख्य नवरात्रे वर्ष में कब कब आते है ?
माँ दुर्गा को केन्द्रित करने वाला देवी पुराण के अनुसार मुख्य नवरात्रे वर्ष में 2 बार आते है |
भारतीय वर्ष के पहले महीने चैत्र (मार्च / अप्रैल) में मैय्या के पहले नवरात्रे आते है जिन्हें वसंती नवरात्रे के नाम से भी जाना जाता है | इन्हे गुप्त नवरात्रे भी कहा जाता है |
इसके अलावा आश्विन मास ( सितम्बर / अक्टूबर) में आने वाले नवरात्रों को मुख्य नवरात्रे माना जाता है | इन्हे शारदीय नवरात्रों के नाम से जाना जाता है | इस महीने के यह 9 दिन शेरोवाली मैय्या के सबसे बड़े 9 दिन माने जाते है और पुरे भारतवर्ष में बड़ी धूम धाम से इन दिनों को मनाया जाता है |
इन दोनों माह के अलावा भी 2 और नवरात्रे माने जाते है जो आषाढ़ (जून / जुलाई) और माघ (जनवरी / फरवरी) में आते है |
नवरात्रि में क्या करे क्या ना करे
कैसे और किसने शुरू किये नवरात्रे :
माँ भगवती की 9 दिनों के नवरात्रों में पूजा सनातन काल से चला आ रहा है | सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका में रावण पर विजय प्राप्त की। तब से ही असत्य पर सत्य की जीत और अधर्म पर, धर्म की जीत का त्यौहार दशहरा मनाया जाने लगा।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन 9 अलग अलग माँ के रूपों की पूजा की जाती है | इस 9 दिनों में पवित्रता और शुद्धि का विशेष ध्यान रखा जाता है | इन नियमो का पालन और विधिपूर्वक की गयी पूजा से माँ दुर्गा की कृपा से साधनाएं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है और नकारात्मक उर्जा ख़त्म होती है |
नवरात्र में क्या करें –
- जितना हो सके लाल रंग के आसन पुष्प वस्त्र का प्रयोग करे क्योकि लाल रंग माँ को सर्वोपरी है |
- सुबह और शाम मां के मंदिर में या अपने घर के मंदिर में दीपक प्रज्जवलित करें। संभव हो तो वहीं बैठकर मां का पाठ करें दुर्गा सप्तसती और दुर्गा चालीसा पढ़े ।
- हर दिन माँ की आरती का थाल सजा कर आरती करे ।
- मां को हर दिन पुष्प माला चढाएं।
- नौ दिन तन और मन से उपवास रखें।
- अष्टमी-नवमीं पर विधि विधान से कंजक पूजन करें और उनसे आशीर्वाद जरूर लें।
- घर पर आई किसी भी कन्या को खाली हाथ विदा न करें।
- नवरात्र काल में माँ दुर्गा के नाम की ज्योति अवश्य जलाए। अखण्ड ज्योत जला सकते है तो उतम है। अन्यथा सुबह शाम ज्योत अवश्य जलाए।
- ब्रमचर्य व्रत का पालन करें। संभव हो तो जमीन पर शयन करें ।
- नवरात्र काल में नव कन्याओं को अन्तिम नवरात्र में घर बुलाकर भोजन अवश्य कराए। नवरात्रि में नव कन्याओ का पूजन करे और आवभगत करे ।
नवरात्रि में कौनसे काम ना करें
- जहां तक संभव हो नौ दिन उपवास करें। अगर संभव न हो तो लहसुन-प्याज का सेवन न करें। यह तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है।
- कैंची का प्रयोग जहां तक हो सके कम से कम करें। दाढी, नाखून व बाल काटना नौ दिन तक बंद रखें।
- निंदा, चुगली, लोभ असत्य त्याग कर हर समय मां का गुनगाण करते रहें।
- मां के मंदिर में अन्न वाला भोग प्रसाद अर्पित न करे ।
दुर्गा सप्तशती पाठ और माँ दुर्गा की महिमा
जब जब इस धरती पर पाप असहनीय हो जाता है तब तब देवी देवता के अवतरण के रूप में कोई महा शक्ति इस धरती पर अवतार लेकर उस पाप का नाश करती है | महाशक्तिशाली और इच्चापुरक काव्य दुर्गा सप्तसती से जानते है की किस तरह माँ दुर्गा का जन्म हुआ और किस तरह उन्होंने बार बार पृथ्वी पर दैत्यों के पाप को ख़त्म किया | दुर्गा सप्तशती पाठ में माँ जगदम्बे की महिमा का अनुपम तरीके से वर्णित किया गया है |
दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व
माँ भगवती की महिमा का गान करने वाले यह धर्म सरिता अपने अन्दर सभी सुखो को पाने के महा गुप्त साधना समेटे हुए है | तांत्रिक साधना , गुप्त साधना मन्त्र साधना और अन्य प्रकार के आराधना के पथ कको सुचारू रूप से बताती है | इस काव्य का पाठ विशेष रूप से नवरात्रों में किया जाता है और अचूक फल देने वाला होता है | दूर्गा सप्तशती पाठ में १३ अध्याय है | पाठ करने वाला , पाठ सुनने वाला सभी देवी कृपा के पात्र बनते है | नवरात्रि में नव दुर्गा की पूजा के लिए यह सर्वोपरि किताब है | इसमे माँ दुर्गा के द्वारा लिए गये अवतारों की भी जानकारी प्राप्त होती है |
माँ दुर्गा के विभिन्न अवतार
देवताओ को वरदान दिया की उनकी सुरक्षा वे विभिन्न अवतार लेकर करेगी
देवी माँ ने दुर्गा सप्तशती के 11वे अध्याय में देवताओ की स्तुति से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया की जब जब त्रिलोक में और उनपे संकट आएगा तब वो स्वम् अवतार लेकर उनके संकटो को दूर करेगी | नवरात्रि में तो माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा तो की ही जाती है इसके अलावा भी भगवती ने अवतार लिए है |
अब जाने दुर्गा माँ से किन किन अवतारों की भविष्वाणी की थी :
रक्तदंतिका :
माँ ने देवताओ को बताया की वो नंदगोप की पत्नी यशोदा के पेट से जन्म लूंगी और विन्ध्याचल पर्वत पर निवास करते समय इन दोनों दैत्यों का वध करूंगी। फिर मैं वैप्रचित्त दानव के नाश करने के लिए एक अत्यंत भयंकर रूप में पृथ्वी पर अवतार लूंगी।’ इस अवतार में माता ने संकेत दिया है कि इन दैत्यों को चबाते हुए माता के समस्त दन्त अनार के दानो के रंग की तरह लाल दिखाई देंगे। इस अवतार के रूप में माँ को भक्त रक्तदंतिका के नाम से पुकारेंगे |
शताक्षी :
माँ ने देवताओ को बताया की अगला अवतार तब लेगी जब धरा पर 100 वर्षो से वर्षा नही होगी | तब माँ मुनियों के स्तुति करने पर प्रकट होंगी। इस अवतार में माता अपने सौ नेत्रों के माध्यम से अपने भक्तों को देखेगी और इनका नाम ‘शताक्षी’ होगा अर्थात सौ आँखों से देखने वाली ।
शाकम्बरी देवी :
जब इस धरा पर 100 वर्षो तक बारिश नही होगी तब इस धरती पर जीवन बचाने माँ शाकम्बरी देवी के रूप में अवतरित होगी और अपनी अनेको शाखाओ से भरण पोषण करेगी जब तक वर्षा नही हो जाती |
दुर्गा :
इसी अवतार में दुर्गम नाम के एक दैत्य का संहार करने के कारण भक्तगण माँ दुर्गा के नाम से भी माता का स्मरण, आरती और स्तुति करेंगे।
भीमा देवी :
देवी ने कहा कि उनका एक अन्य अवतार ‘भीमा देवी’ के रूप में भी होगा। जब राक्षस हिमालय में रहने वाले मुनियों को परेशान करेंगे और उनकी पूजा में विघ्न डालेंगे, तब माता उन राक्षसों का वध करेंगी।
भ्रामरी माता :
फिर जब तीनों लोकों पर अरुण नाम के दैत्य अपनी बुराइयों को पनपायेगा और जगत में त्राहिमाम होगा तब संतो और देवताओ के रक्षा करने का आह्वान करेंगे, तब माता छह पैरों वाले असंख्य भ्रमरों का रूप धारण करके अरुण दैत्य का नाश करेगी। तीनों लोकों में तब माता ‘भ्रामरी माता’ के नाम से पूजी जाएगी
माँ दुर्गा की मूर्ति का रूप
माँ की मूरत मिट्टी , अष्ट धातु , सोना या चाँदी की बनवाए जिसमे दुर्गा माँ सिंह के कंधे पर सवार हो | माँ के अष्ट भुजाये हो जिसमे माँ ने क्रमशः गदा , खडग , त्रिशूल , बाण , धनुष , कमल ,खेट (ढाल), और मुद्गर धारण करवाए | इस मूरत के मस्तक पर चंद्रमा का चिन्ह हो , उसके त्रिनेत्र हो | माँ को लाल वस्त्र पहनाये | माँ के महिषासुर का वध करने का भी इसमे रूप हो | इस तरह की मूरत बनवाकर नियम पूर्वक प्रतिदिन पूजा करने से माँ शीघ्र प्रसन्न होती है|
देवी माँ दुर्गा की पूजा से सभी देवता खुश
सिर्फ आदि शक्ति दुर्गा माँ की पूजा अर्चना से ही खुश हो जाते है समस्त देवी देवता :
यह प्रसंग हम लाये है दुर्गा सप्तशती पाठ से जिसमे बताया गया है की तीनो लोको के कल्याण के लिए किस तरह देवी दुर्गा माँ का अवतरण हुआ है और क्यों देवी माँ दुर्गा की ही आराधना से सभी मुख्य देवी देवताओ का आशीष साधक को प्राप्त होता है |
देवताओ की वेदना पर त्रिदेव और देवताओ के तेज से भगवती का अवतार :
दुर्गा सप्तशती के दुसरे अध्याय से जब दानव राज महिषासुर ने अपने राक्षसी सेना के साथ देवताओ पर सैकड़ो साल चले युद्ध में विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग का राजाधिराज बन चूका था | सभी देवता स्वर्ग से निकाले जा चुके थे | वे सभी त्रिदेव (बह्रमा विष्णु और महेश) के पास जाकर अपने दुखद वेदना सुनाते है | पूरा वर्तांत सुनकर त्रिदेव बड़े क्रोधित होते है और उनके मुख मंडल से एक तेज निकलता है जो एक सुन्दर देवी में परिवर्तित हो जाता है | भगवान शिव के तेज से देवी का मुख , यमराज के तेज से सर के बाल , श्री विष्णु के तेज से बलशाली भुजाये , चंद्रमा के तेज से स्तन , धरती के तेज से नितम्ब , इंद्र के तेज से मध्य भाग , वायु से कान , संध्या के तेज से भोहै, कुबेर के तेज से नासिका , अग्नि के तेज से तीनो नेत्र |
देवताओ द्वारा शक्ति का संचार देवी दुर्गा में :
शिवजी ने देवी को अपना शूल , विष्णु से अपना चक्र , वरुण से अपना शंख , वायु ने धनुष और बाण , अग्नि ने शक्ति , बह्रमा ने कमण्डलु , इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह , कुबेर ने मधुपान , विश्वकर्मा में फरसा और ना मुरझाने वाले कमल भेट किये , और इस तरह सभी देवताओ ने माँ भगवती में अपनी अपनी शक्तिया प्रदान की |
इन सभी देवताओ के तेज से देवी दुर्गा में रूप के साथ साथ शारीरिक और मानसिक शक्ति का भी संचार होता है | देवता ऐसी महाशक्ति महामाया को देखकर पूरी तरह आशावान हो जाते है की महिषासुर का काल अब निकट है और देवताओ का फिर से स्वर्ग पर राज होगा | माँ दुर्गा ने महिषासुर और उसकी सम्पूर्ण सेना का वध करके देवताओ को फिर से स्वर्ग दिला दिया | माँ के जय जयकार तीनो लोको में हुई | तब से जो भी व्यक्ति सच्चे मन से माँ दुर्गा की आराधना करता है उसे सभी देवताओ का आशीष मिलता है | माँ दुर्गा के नव रूप की पूजा के लिए नवरात्रि त्यौहार मनाया जाता है | घर घर में कलश स्थापना की जाती है और रात्रि में माँ दुर्गा का जागरण किया जाता है |
नव दुर्गा बीज मंत्र
नवरात्रि का पर्व नौ शक्ति रुपी देवियों के पूजा के लिए है | यह सभी देवी रूप अपने आप में शक्ति और भक्ति के भंडार है | जगत में अच्छाई के लिए माँ का कल्याणकारी रूप सिद्धिदात्री , महागौरी आदि है, और इसी के साथ जगत में पनप रही बुराई के लिए माँ कालरात्रि , चन्द्रघंटा रूप धारण कर लेती है |
अब जाने वे बीज मंत्र जो इन नौ देवियों को प्रसन्न करते है | हर एक देवी का पृथक बीज मंत्र यहाँ दिया गया है |
1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:
2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
3. चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:
4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:
5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
कन्या पूजन विधि नवरात्रि में
नवरात्र पर्व के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन और उन्हें घर बुलाकर भोजन कराने का विधान होता है. दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन आखरी नवरात्रों में इन कन्याओ को नौ देवी स्वरुप मानकर इनका स्वागत किया जाता है | माना जाता है की इन कन्याओ को देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज से माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तो को सुख समृधि का वरदान दे जाती है |
दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन क्यों और कैसे किया जाता है?
नवरात्र पर्व (Navratri Festival) के दौरान कन्या पूजन का बडा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं. नवरात्रे के किस दिन करें कन्या पूजन : कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन और भोज रखते हैं और कुछ लोग अष्टमी के दिन | हम्हरा मानना है की अष्टमी के दिन कन्या पूजन श्रेष्ठ रहता है |
कन्या पूजन विधि
जिन कन्याओ को भोज पर खाने के लिए बुलाना है , उन्हें एक दिन पहले ही न्योता दे दे | मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर उधर से कन्याओ को पकड़ के लाना सही नही है | गृह प्रवेश पर कन्याओ का पुरे परिवार के सदस्य पुष्प वर्षा से स्वागत करे और नव दुर्गा के सभी नौ नामो के जयकारे लगाये | अब इन कन्याओ को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर इन सभी के पैरो को बारी बारी दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथो से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छुकर आशीष लेना चाहिए | उसके बाद पैरो पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए | फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन देवी रुपी कन्याओ को इच्छा अनुसार भोजन कराये | भोजन के बाद कन्याओ को अपने सामर्थ के अनुसार दक्षिणा दे , उपहार दे और उनके पुनः पैर छूकर आशीष ले |
नवरात्र पर्व पर कन्या पूजन में कितनी हो कन्याओं की उम्र ?
कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए | यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है |
सिर्फ 9 दिन ही नहीं है यह कन्या देवियाँ :
नवरात्रों में भारत में कन्याओ को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते है | बहूत जगह कन्याओ पर शोषण होता है , उनका अपनाम किया जाता है | आज भी भारत में बहूत सारे गाँवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है | ऐसा क्यों | क्या आप देवी माँ के इन रूपों को क्यों ऐसा अपमान करते है | हर कन्या अपना भाग्य खुद लेकर आती है | कन्याओ के प्रति हमहें हम्हारी सोच बदलनी पड़ेगी | यह देवी तुल्य है | इनका सम्मान करना इन्हे आदर देना ही ईश्वर की पूजा के तुल्य है |
माँ दुर्गा की स्तुति
हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे।
महिषासुरमर्दिनि, भव भय भंजनि, शक्तिदायिनी माँ दुर्गे।
तुम निर्बल की रक्षक, भक्तों का बल विश्वास बढ़ाती हो
दुष्टों पर बल से विजय प्राप्त करने का पाठ पढ़ाती हो।
हे जगजननी, रणचण्डी, रण में शत्रुनाशिनी माँ दुर्गे।
जग के कण-कण में महाशक्ति की व्याप्त अमर तुम चिंगारी
दृढ़ निश्चय की निर्भय प्रतिमा, जिससे डरते अत्याचारी।
हे शक्ति स्वरूपा, विश्ववन्द्य, कालिका, मानिनि माँ दुर्गे।
तुम परब्रम्ह की परम ज्योतिदुष्टों से जग की त्राता हो
पर भावुक भक्तों की कल्याणी परमवत्सला माता हो।
निशिचर विदारिणी, जग विहारिणि, स्नेहदायिनी माँ दुर्गे।
अन्य मुख्य नवरात्रि ज्ञान :
माँ दुर्गा की मूर्ति रूप माँ दुर्गा के अवतार
दुर्गा सप्तशती से चमत्कारी मंत्र
निचे दिए गये लिंकों में आप जानेंगे नवरात्रि से जुडी विशेष बाते :
सभी देवताओ की पूजा माँ दुर्गा की पूजा से
कैसे होती है नवरात्रों में कलश स्थापना
क्या करे क्या ना करे नवरात्रों में
माँ दुर्गा के 9 रूप और उनकी महिमा