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श्री राम के बारे में, श्री राम का परिवार, आरती, चालीसा, श्री राम के 108 नाम, राम नवमी का त्यौहार, राम नाम की महिमा

भगवान् श्री राम और उनके परम भक्त हनुमान जी की सबसे प्यारी वेबसाइट है | जिससे सभी राम हनुमान भक्त प्रभु की भक्ति का रस पान कर सके . भगवान श्री रामचंद्र से जुड़े मुख्य लिंक निचे दिए गये है |

Table of Contents

श्री राम के बारे में

भगवान श्री राम में वे सभी गुण थे जो धर्म में बताये गये है | श्री राम वैदिक सनातन धर्म की जान आत्मा है |वेदों को मानने वाले श्री राम के परम भक्त है महान महाकाव्य रामायण जिन्हें महर्षि वाल्मीकिजी ने लिखा है , श्री राम मुख्य पात्र है | अवतरित हुए भगवानो में यह सबसे प्राचीन और ऊपर है | यह सबसे अच्छे उदारण है अच्छे बेटे , अच्छे पति होने के | भगवान् श्री विष्णु के यह 7th अवतार है | श्री राम असुर सम्राट लंकापति रावण से इस धरती को बचाने के लिए अवतरित हुए |श्री राम परिचय रावण को यह वरदान प्राप्त था की वो किसी भी देवी देवता के हाथो नहीं मर सकता है अत: भगवान विष्णु मानव रूप में इस धरा पर अवतरित हुए | श्री राम को मर्यादा पुरषोतम के नाम से भी जाना जाता है |

जन्म और बच्चपन

अयोधा के राजा दशरथ और उनकी सबसे बड़ी पत्नी कोसल्या के श्री राम का जन्म हुआ | इनके तीन छोटे भाई भरत , लश्मन और शत्रुघ्न थे | यह समय त्रेता युग कहलाया |

श्री राम परिवार

भगवान श्री राम पालनकर्ता लक्ष्मीपति श्री विष्णु के 7th अवतार थे जो अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे । श्री राम परिवार रामचन्द्र हिन्दुत्ववादियों के भी आदर्श पुरुष है और अति पूजनीय है । कौशल्या माँ के अलावा श्री राम के दो और माताए थी जिनका नाम सुमित्रा और कैकेयी था । सुमित्रा के दो पुत्र, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे और कैकेयी के पुत्र भरत थे | राम की पत्नी जनक नंदनी सीता थी । राम के परम प्रिय मित्र श्री हनुमान जी थे | राम के मुख्य गुरुदेव महर्षि वशिष्ट और महर्षि विश्वामित्र थे |

गुरुकुल में शिक्षा :

श्री राम और उनके तीनो भाई भरत , लश्मन और शत्रुघ्न ने गुरु वशिष्ट के गुरुकुल में शिक्षा पाई | चारो भाई वेदों उपनिषदों के बहूत बड़े ज्ञाता बन गये | गुरुकुल में अच्छे मानवीय और सामाजिक गुणों का उनमे संचार हुआ | अपने अच्छे गुणों और ज्ञान प्राप्ति की ललक से वे सभी अपने गुरुओ के प्रिय बन गये

सीता से विवाह :

मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर आयोजीत किया जिसमे देश विदेश से महबली राजाओ को न्योता दिया गया | श्री राम लखन और गुरु विश्वामित्र के साथ इस सम्मलेन में आये | यह घोषणा की गयी की जो कोई सबसे पहले भगवान् शिव की इस धनुष पर प्रत्यंशचा चढ़ाएगा , वही सीता से विवाह करने के पात्र होगा | सभी महाबली एक एक करते प्रत्यन करते रहे और विफल होते रहे | अंत में गुरु विश्वामित्र के आदेश से श्री राम ने यह कार्य किया और सीता से विवाह के पात्र बने |

14 साल वनवास :

सबसे बड़े पुत्र होने की वजह से श्री राम को अयोध्या का राज्य नियमो से राजा बनना था लेकिन सोतेली माँ कैकई स्वार्थवश अपने पुत्र भरत को राजा बनाना चाहती थी | महाराज दशरथ से उन्होंने अपने पुत्र के राज पाठ मांग लिया और श्री राम के लिए १४ वर्षो का वनवास | राजा दशरथ अपने वचनों में बंधे होने के कारण उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा | माँ सीता और लखन भी राम के साथ वनवास चले गये |

रावण से युद्ध

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वनवास के दोरान रावण ने छल से माँ सीता का हरण करके अपने साथ लंका ले गया और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा | माँ सीता ने किसी भी कीमत पर यह नही स्वीकार किया | बजरंग बलि और वानर सेना की सहायता से श्री राम ने सीता का पता लगाया और उसके बाद भीष्म युद्ध हुआ जिसमे श्री राम विजयी रहे और माँ सीता पुनः प्राप्त किया |

अयोध्या में भव्य स्वागत

अयोध्यावाशियों ने गृह आगमन पर श्री राम सीता और लखन का दीप जलाकर भव्य स्वागत किया | आज भी दिवाली पर Deep उनके स्वागत में जलाये जाते है |

भगवान श्री राम के मुख्य मंदिर

सूर्यवंशी और अयोध्या में जन्मे विष्णु भगवान के अवतार श्री राम को भारत में त्रेता युग से ही पूजा जाता है | इनके साथ साथ इनके परम सखा और भक्त श्री हनुमान की भी पूजा की जाती है | भारत में लगभग हर मंदिर में श्री राम के साथ माता सीता भाई लखन या यूँ कहे की पुरे रामपरिवार की पूजा की जाती है | आज हम आपको भगवान श्री राम के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और मुख्य मंदिरों के बारे में बताएँगे :

मुख्य श्री राम मन्दिरो की जानकारी

अयोध्या में कनक महल मंदिर :

यह महल भी है और मंदिर भी | और इसका संबध सीधे श्री राम और उनके परिवार से है | माना जाता है की इस महल को माता कैकई ने सीता को विवाह के बाद मुँह दिखाई में दिया था | उस समय यह अयोध्या में सबसे दिव्य महलों में से एक था | त्रेता युग में श्री राम के धरती से लौट आने पर उनके पुत्र कुश ने इस महल में अपने माता पिता सीता राम की मूर्तियाँ स्थापित की | समय के साथ यह महल जर्जर होता रहा तो पुनः भी सुधारा गया |

रामास्वामी मन्दिर – कुंभकोणम

तमिलनाडु के थंजावूर जिले में स्थित कुंभकोणम में यह मंदिर श्री राम को समर्प्रित है | मंदिर का निर्माण सोलवी शताब्दी में नयक्कर राजाओं ने करवाया है , मंदिर की बनावट नायक कालीन वास्तुकला शैली में की गयी है | मंदिर में रामायण को चित्रों से के माध्यम से दिखाया गया है | मंदिर में 64 खम्बे लगे हुए है | मंदिर में श्री राम दरबार लगा हुआ है जिसमे श्री राम , माँ सीता , भाई लक्ष्मण , भरत शत्रुधन और हनुमान जी है |

श्री सीतारामचंद्र स्वामी मंदिर भद्राचलम

श्री राम और जानकी माँ को समर्पित एक हिंदू मंदिर है , यह मंदिर आंध्रप्रदेश के खम्मण जिले के भद्राचलम शहर में स्थित है। भयह पर्णशाला गाँव से ३५ किमी की दुरी पर है | माना जाता है की यहा भगवान श्री राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ वनवास के कुछ पल बिताते थे | इस जगह को भगवान राम के भक्त दक्षिण की अयोध्या भी कहते है | यह भी विश्वास किया जाता है की रावण ने यही से माता सीता का अपहरण किया था |

कोदंडा रामास्वामी मंदिर – चिकमंगलूर

कोदंडा रामास्वामी मंदिर भगवान श्री राम को समर्प्रित मंदिर है जो कदापा जिले के वोनतीमित्ता कस्बे में है | सोलवी शताब्दी में बना यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे विशाल मंदिर है | यह मंदिर दो लुटेरो ने बनाया था जो बाद में श्री राम के भक्त बन गये थे उनके नाम वोंतुदु और मित्तुदु था |

त्रिप्रायर श्री राम मंदिर :

भारत के दक्षिण में केरल के दक्षिण-पश्चिमी शहर त्रिप्प्रयार (त्रिप्रायर) में यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है | यह त्रिप्रायर नदी के किनारे कोडुन्गल्लुर पर है | माना जाता है की यहा के मुखिया को एक मूर्ति नदी तट पर मिली जिसमे त्रिदेवो के तत्व थे | अत: इसकी स्थापना के बाद इसकी पूजा त्रिमूर्ति के रूप मे की जाती है | मंदिर के गर्भगृह में रामायण के चित्र बने हुए है और लकड़ी की नक्काशी शानदार की गयी है | यहा कोट्टू (नाटक) प्रसिद्ध है |

रघुनाथ मंदिर जम्मू कश्मीर :

उत्तर भारत के श्री राम मंदिरों में इस मंदिर को विशेष स्थान प्राप्त है जो जम्मू कश्मीर के जम्मू में स्थित है | इस मंदिर में मुख्य आराध्य देव भगवान् श्री रामचंद्र ही है | मंदिर के अन्दर शानदार नक़्क़ाशी की गयी है | भीतर की दीवारे सोने की बनाई गयी है | 1835 में महाराजा गुलाब सिंह ने इस मंदिर को बनवाना शुरू किया था जिसे आगे महाराजा रणजीतसिंह ने आगे बढ़वाया | रामायण काल के कई देवी देवताओ के मंदिर भी यही आस पास में बने हुए है |

चित्रकूट का राम मंदिर :

श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे जिसे आजकल इलाहाबाद कहा जाता है | यह तीन महानदियो के संगम होने के कारण हिन्दुओ का पवित्र तीर्थ स्थल है | यमुना के पार चित्रकूट है जहा वे कई दिनों तक अनुसूया के आश्रम में रहे | यहां पर रामघाट, जानकी कुंड, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी आदि ऐसे कई स्थल हैं।

पंचवटी में राम

नासिक का यह स्थान श्री राम के वनवास का सबसे बड़ा यादगार स्थान है | यह पहले दंडक वन के नाम से जाना जाता था | इसी जगह लक्षमण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। नासिक में गोदावरी के तट पर 5 वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है जो है आंवला, बेल ,अशोक , बरगद और पीपल | यह मान्यता है की यह वृक्ष स्वयं श्री राम और लक्ष्मण ने अपने हाथो से लगाये थे |

रामनवमी का त्यौहार

रामनवमी का त्यौहार भगवान श्री राम के जन्मोस्तव के रूप में बढ़ी धूम धाम से सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है | यह दिन हर साल चैत्र महीने (March-April)) में नवमी को आता है | सनातन धर्मी राम भक्त बड़ी उत्सुकता से इस दिन श्री राम के जन्म का उत्सव मनाते है | भगवान श्री राम अपने मानवीय गुणों से सभी हिन्दुओ के लिए हमेशा एक आदर्श देवता रहे है | वे सबसे अच्छे पुत्र , पति , राजा और पिता के रूप में देखे जाते है |

रामनवमी पर कैसे करे पूजा जाने :

About shri ram ji

रामनवमी के दिन श्री राम भक्त भगवान प्रभु के लिए व्रत रखते है | श्री राम के मंत्रो का उच्चारण करते है और उनके भजन सुनते और गाते है | कुल मिलाकर पूरा दिन राम भक्ति में लगे रहते है | शाम को राम मंदिर में या अपने घर पर राम दरबार को सजाते है और प्रभु के भोग लगाकर अपना व्रत खोलते है | “राम लल्ला की जय “ यही सभी भक्तो के जुबान पर होता है | श्री राम की पूजा के साथ साथ पुरे दरबार की पूजा की जाती है जिसमे श्री राम , उनकी धर्मपति माँ सीता उनके भाई लश्मन , भरत , शत्रुघ्न और श्री हनुमान है |

रामनवमी के दिन क्या करते है राम भक्त :

सूर्योदय से पूर्व उठकर राम भक्त नित्य कर्म से मुक्त होकर नहा लेते है | फिर या तो श्री राम मंदिर में जाकर या फिर अपने घर के मंदिर में राम प्रतिमा में भगवान के रूप को देखकर उन्हें जन्मदिवस की शुभकामनाये देते है | फिर पुष्प माला से श्रृंगार करके आरती करते है और भगवान श्री राम के महा मंत्रो से जयजयकार करते है | राम भक्तो के द्वारा पुरे दिन उपहास रखा जाता है | शाम को श्री राम जी का जुलुस और शोभा यात्रा निकाली जाती है |

रामनवमी के त्यौहार पर रथ यात्राये :

अयोध्या में जन्मे श्री राम के इस जन्मदिवस पर देश भर में श्री राम और उनके भाई लखन , माँ जानकी और हनुमानजी की रथ यात्राये गाजे बाजे के साथ निकाली जाती है | जयकारो की गूंज के साथ हर जगह भक्त टकटकी लगाये इन शोभायात्राओ का आनंद लेते है |

राम नाम की महिमा और शक्ति

राम नाम की महिमा का कोई पार नहीं है | यह अति सुखदाई है जो आत्मिक और मानसिक सुख प्रदान करता है | हजारो बार वैज्ञानिक यह सिद्ध कर चुके है की श्री राम का नाम जपने वाला व्यक्ति नकारात्मक उर्जा से दूर सकारात्मक उर्जा से भर जाता है | राम सर्वशक्ति शाली है पर उनके तीन परम भक्तो ने अपनी भक्ति से उनके नाम को उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बना दिया है | ये तीन महान भक्त है हनुमान जी , भरत और विभीषण |

कोई तन दुखी, कोई मन दुखी, कोई धन बिन रहत उदास
इस जगत में बस एक सुखी जो जय राम का दास |

राम का नाम लिखने पर पत्थर भी पानी में तीर जाते है

यह तो सर्वविदित है की जब लंका जाने के लिए समुन्द्र पर रामेतु पुल बनाना था तब नल और नीर ने पत्थरो पर प्रभु श्री राम का नाम लिखकर उन्हें पानी पर तीरा दिया था | यह राम नाम की शक्ति थी की पत्थर भी पानी में डूब नही सके | आज भी वो पत्थर पानी में डूबते नही है | यह राम नाम का चमत्कार ही था |

राम नाम में है कितनी शक्ति

र’, ‘अ’ और ‘म’, इन तीनों अक्षरों के योग से ‘राम’ मंत्र बनता है। यही राम रसायन है। ‘र’ अग्निवाचक है। ‘अ’ बीज मंत्र है। ‘म’ का अर्थ है ज्ञान। यह मंत्र पापों का नाश करके ज्ञान की ज्योत जलाने वाला है | मुक्ति का आधार , नारायण के चरणों में पहली कदम यही है | राम शब्द का अर्थ ही पापो का नाश करने वाला , मनोहर | यही व्यक्ति के एक सहारा है | विष्णु के सहस्त्र नामो एक यही निचोड़ है |

राम में छिपा है ॐ और ॐ में छिपा है राम

राम शब्द का विग्रह करने पर बनता है र + अ + म = इसके दुसरे क्रम में अ र म फिर अ : म और उससे बना है ॐ |
इसी तरह ॐ से बनेगा राम : अ : म उससे अ + र + म और क्रम बदलने से र + अ + म = राम
अत: राम शब्द में महा अक्षर ॐ की शक्ति विधमान है और इसकी कारण राम शब्द को वेदप्राण भो बोला जाता है |

सबसे सरल मंत्र है राम

यदि आप मंत्रो का उच्चारण या जाप करना चाहे और विधि नही पता हो , या मंत्र नहीं जानते हो तब यह राम शब्द का जाप सर्वसिद्धि देने वाला है | आप अच्छी तरह जानते है की सिर्फ राम राम का जाप करने से हनुमानजी और विभीषन तक अजर अमर हो गये और उनकी कीर्ति हर जगह सूर्य के प्रकाश की तरह फ़ैल गयी | राम नाम लेखन आज हिन्दुओ की आधारशिला बन चूका है | बस राम का नाम लिखते रहे और मन में राम राम करते रहे |

भगवान श्री राम जी की आरती

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भगवान श्री राम की आरती में इनके रूप व्यक्तित्व परिवार आदि की महिमा का भक्तिमय वर्णन महाकवि तुलसीदास जी ने किया है | उन्होंने इस आरती के माध्यम से भक्तो के मन में बसे पाप को नष्ट करने की विनती भी की है | श्री रामचंद्र जी की आरती हिंदी में निचे दी जा रही है | आरती के बाद श्री राम चालीसा का पाठ भी जरुर करना चाहिए |

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |
नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं ||

कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं |
पटपीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमि जनक सुतवरं ||

भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन |
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं ||

सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां |
आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं ||

इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं |
मम ह्रदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं ||

मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो |
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ||

एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली |
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली ||

दोहा

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि |
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ||

श्री राम चालीसा

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चौपाई

श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥

दोहा

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥

।।इतिश्री प्रभु श्रीराम चालीसा समाप्त:।।

श्री राम १०८ नामावली

1 ॐ राम रामाय नमह:
2 ॐ राम भद्राया नमह:
3 ॐ राम चंद्राय नमह:
4 ॐ राम शाश्वताया नमह:
5 ॐ राजीवलोचनाय नमह:
6 ॐ वेदात्मने नमह:
7 ॐ भवरोगस्या भेश्हजाया नमह:
8 ॐ दुउश्हना त्रिशिरो हंत्रे नमह:
9 ॐ त्रिमुर्तये नमह:
10 ॐ त्रिगुनात्मकाया नमह:
11 ॐ श्रीमते नमह:
12 ॐ राजेंद्राय नमह:
13 ॐ रघुपुंगवाय नमह:
14 ॐ जानकिइवल्लभाय नमह:
15 ॐ जैत्राय नमह:
16 ॐ जितामित्राय नमह:
17 ॐ जनार्दनाय नमह:
18 ॐ विश्वमित्रप्रियाय नमह:
19 ॐ दांताय नमह:
20 ॐ शरणात्राण तत्पराया नमह:
21 ॐ वालिप्रमाथानाया नमह:
22 ॐ वाग्मिने नमह:
23 ॐ सत्यवाचे नमह:
24 ॐ सत्यविक्रमाय नमह:
25 ॐ सत्यव्रताय नमह:
26 ॐ व्रतधाराय नमह:
27 ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमह:
28 ॐ कौसलेयाय नमह:
29 ॐ खरध्वा.सिने नमह:
30 ॐ विराधवाधपन दिताया नमह:
31 ॐ विभीषना परित्रात्रे नमह:
32 ॐ हरकोदांद खान्दनाय नमह:
33 ॐ सप्तताला प्रभेत्त्रे नमह:
34 ॐ दशग्रिइवा शिरोहराया नमह:
35 ॐ जामद्ग्ंया महादर्पदालनाय नमह:
36 ॐ तातकांतकाय नमह:
37 ॐ वेदांतसाराय नमह:
38 ॐ त्रिविक्रमाय नमह:
39 ॐ त्रिलोकात्मने नमह:
40 ॐ पुंयचारित्रकिइर्तनाया नमह:
41 ॐ त्रिलोकरक्षकाया नमह:
42 ॐ धंविने नमह:
43 ॐ दंदकारंय पुण्यक्रिते नमह:
44 ॐ अहल्या शाप शमनाय नमह:
45 ॐ पित्रै भक्ताया नमह:
46 ॐ वरप्रदाय नमह:
47 ॐ राम जितेंद्रियाया नमह:
48 ॐ राम जितक्रोधाय नमह:
49 ॐ राम जितामित्राय नमह:
50 ॐ राम जगद्गुरवे नमह:
51 ॐ राम राक्षवानरा संगथिने नमह:
52 ॐ चित्रकुउता समाश्रयाया नमह:
53 ॐ राम जयंतत्रनवरदया नमह:
54 ॐ सुमित्रापुत्र सेविताया नमह:
55 ॐ सर्वदेवादि देवाय नमह:
56 ॐ राम मृतवानर्जीवनया नमह:
57 ॐ राम मायामारिइचहंत्रे नमह:
58 ॐ महादेवाय नमह:
59 ॐ महाभुजाय नमह:
60 ॐ सर्वदेवस्तुताय नमह:
61 ॐ सौम्याय नमह:
62 ॐ ब्रह्मंयाया नमह:
63 ॐ मुनिसंसुतसंस्तुतया नमह:
64 ॐ महा योगिने नमह:
65 ॐ महोदराया नमह:
66 ॐ सच्चिदानंद विग्रिहाया नमह:
67 ॐ परस्मै ज्योतिश्हे नमह:
68 ॐ परस्मै धाम्ने नमह:
69 ॐ पराकाशाया नमह:
70 ॐ परात्पराया नमह:
71 ॐ परेशाया नमह:
72 ॐ पारगाया नमह:
73 ॐ पाराया नमह:
74 ॐ सर्वदेवात्मकाया परस्मै नमह:
75 ॐ सुग्रिइवेप्सिता राज्यदाया नमह:
76 ॐ सर्वपुंयाधिका फलाया नमह:
77 ॐ स्म्रैता सर्वाघा नाशनाया नमह:
78 ॐ आदिपुरुष्हाय नमह:
79 ॐ परमपुरुष्हाय नमह:
80 ॐ महापुरुष्हाय नमह:
81 ॐ पुंयोदयाया नमह:
82 ॐ अयासाराया नमह:
83 ॐ पुरान पुरुशोत्तमाया नमह:
84 ॐ स्मितवक्त्राया नमह:
85 ॐ मितभाश्हिने नमह:
86 ॐ पुउर्वभाश्हिने नमह:
87 ॐ राघवाया नमह: 88 ॐ अनंतगुना गम्भिइराया नमह:
89 ॐ धिइरोत्तगुनोत्तमाया नमह:
90 ॐ मायामानुश्हा चरित्राया नमह:
91 ॐ महादेवादिपुउजिताया नमह:
92 ॐ राम सेतुक्रूते नमह:
93 ॐ जितवाराशये नमह:
94 ॐ सर्वतिइर्थमयाया नमह:
95 ॐ हरये नमह:
96 ॐ श्यामानगाया नमह:
97 ॐ सुंदराया नमह:
98 ॐ शुउराया नमह:
99 ॐ पितवाससे नमह:
100 ॐ धनुर्धराया नमह:
101 ॐ सर्वयज्ञाधिपाया नमह:
102 ॐ यज्वने नमह: 103 ॐ जरामरनवर्जिताया नमह:
104 ॐ विभिषनप्रतिश्थात्रे नमह:
105 ॐ सर्वावगुनवर्जिताया नमह:
106 ॐ परमात्मने नमह:
107 ॐ परस्मै ब्रह्मने नमह:
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