प्रेम और श्रद्धा दोनों एक सामाजिक भाव है, किन्तु उत्पति प्रभाव एवं प्रतिक्रिया की दृष्टि से दोनों में अंतर इस प्रकार है –
क्र. | प्रेम | श्रद्धा |
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1 | प्रेम स्वाधीन कार्य पर निर्भर करता है, किसी को कोई अच्छा लग गया, उस से प्रेम उस से प्रेम हो जाता है। | श्रद्धा व्यक्ति के उत्तम कार्यों के द्वारा उत्पन्न होने वाली मनोदशा है इसका सामाजिक प्रभाव होता है। |
2 | प्रेम एकांतिक होता है प्रेमी प्रिय को अपने में समेट लेना चाहता है उसकी व्यापकता स्वीकार नहीं करता है। | श्रद्धा व्यवहारिक एवं समष्टि रूप में होता है श्रद्धा का लोकव्यापीकरण श्रद्धालू को अच्छा लगता है। |
3 | प्रेम में घनत्व होता है। | श्रद्धा का विस्तार होता है। |
4 | शारीरिक सौंदर्य भी करण हो सकता है। | श्रद्धा के लिए कार्यों का उत्तम होना आवश्यक है |
5 | प्रेम में दो पक्ष होते है – प्रेमी और प्रिय। | इसमें 3 पक्ष होते हैं श्रद्धा, उसका कार्य, श्रद्धालु। |
6 | इसमें भावना व्यक्ति से उसके कार्य की ऒर जाता है। | इसमें भावना कार्य से व्यक्ति की ऒर जाता है। |
7 | प्रेम स्वपन है। | श्रद्धा जागरण है। |
8 | प्रेमी प्रिय पर अधिकार चाहता है। | श्रद्धालु श्रद्धा पर अधिकार स्वयं नहीं चाहता विस्तार जाता है। |
9 | इसका करण आनीदृष्टि और अज्ञात होता है। | इसका कारण निर्दिष्ट और ज्ञात होता है। |
इस प्रकार प्रेम और श्रद्धा भिन्न हैं किन्तु दिखने में सामान लगते हैं।
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